मासूमियत।
आया था दुनिया में नया-नया,
थी चेहरे पर मासूमियत प्यारी,
फिर बड़ा हुआ तो समझदारी ने,
छीन ली वो मासूमियत सारी,
परिचय हुआ दुनियादारी से,
तो संपर्क में आने लगी दुश्वारी,
मुकाम चाहे जो भी हो पर,
कहां है ज़िंदगी बचपन सी प्यारी,
व्यथा ये मन की कही न जाए,
कि नादानी पर है परिपक्वता भारी,
है बाकी आज भी बचपना थोड़ा,
कि बनी रहे बचपन से यारी,
हर पल जीवन का अबूझ पहेली,
कि आज भी है सफ़र ये जारी।
कवि- अंबर श्रीवास्तव।