दिशाहीन
सिर पर रखा है बोझ और जा रहे हैं वो ।
जाना कहाँ है , ये भी तो मालूम नहीं है ।।
सूखी रखी हैं रोटियां जो खाने के लिए ।
खाना कहाँ है , ये भी तो मालूम नहीं है ।।
चल तो रहे दिन रात कुछ पाने के लिए ।
पाना कहाँ है ये भी तो मालूम नहीं है ।।
लेकर दिलों में दर्द भरे गीत जा रहे ।
गाना कहाँ है ये भी तो मालूम नहीं है ।।
लम्बी उड़ान भर रहे हैं दाने के लिए ।
दाना कहाँ है ये भी तो मालूम नहीं है ।।
बैठे हैं जोश लेके कहर ढायेंगे जरूर ।
ढाना कहाँ है ये भी तो मालूम नहीं है ।।
वन में भटक रहा फकीर बाने के लिए ।
बाना कहाँ है ये भी तो मालूम नहीं है ।।