“माली की बग़िया”
“माली की बगिया”
माली एक दिन अपनी कुटिया के आँगन में बैठा सोच रहा था,क्या सींच पाऊँगा अपनी बगिया?
मिट्टी की मीठी सी खूशबू का आनंद लेते हुए मन को मज़बूत किया और चल दिया अपनी बगिया के बाग़ान में और बो दिया बीज क्यूँकि बहुत दिन से बीज सम्भाल रखे थे।कुछ सोच विचार करता रहता और उदास था। लेकिन आज माली का मन गाने लगा ख़ुशी के गीत क्यूँकि मन को खुश कर लिया एक अच्छी सोच से।
दिन बीतने लगे एंव पक्षी आते चहचहाते और गीत गाते! अंकुर फूटने लगे और महकने लगी बगिया माली की।खिल उठा था रंग बिरंगी कलियों का संसार।
खिलती कलियों को देख कर माली की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा. झूमता,नाचता, हर्षोल्लास से पानी से सिंचता कलियों के बाग़ान को।भँवरों से बचाता और हर वो कोशिश करता जिस से कलियाँ खिली रहें। मेघ आते फुहार करते, मानो मोती चमक रहे हों खिली कलियों पर।यह माली की मेहनत का पसीना ही था जो चमक रहा था खिलती कलियों पर।माली की उदासी खिलते बगीचे को देख कर स्फूर्ति में बदल जाती और वो परिवार की परवरिश की तरह बगीचे को भी सींचता रहता था उत्साह से।
खाद डालता और हरे भरे बगीचे को रंग बिरंगा खिलते हुए देख कर गर्व महसूस करता।डर,जो उसको परेशान करता कि कोई हवा का झोंका न आ जाए और उसका बगीचा जो उसकी दुनिया बन चुका था नुक़सान न पहुँचा जाए।हवाओं से बात करता, हे हवाओ,सम्भल कर चलना, मेरी मेहनत की खिलती कलियाँ झुक ना जाए इसलिए दूर से ही सर सर निकलना!
बगीचा हुआ तैयार,खिलती हुई कलियों का परिवार,माली के परिश्रम का कमाल,अब सामने था और कुदरत की रहमत हुई और माली का जीवन सुख समृद्धि से परिपूर्ण हो गया।अब उदासी नहीं रही थी। खिलती दुनिया रंग लाने लगी थी।माली अपनी परिश्रम को देख कर खुश रहने लगा और परिवार में भी ख़ुशहाली छा गयी।
कुदरत की कृपा बनी रहे । परिश्रम का पसीना ख़ुशहाली से चमकता रहे। जैसे माली की खिलती कलियों से बगीचा महका वैसे ही सब का आँगन महकता रहे।
“गुल कभी नहीं मुस्कुराते गर कलियाँ न खिलतीं,
बगीचा बाग़बान न कहलाता गर माली न सिंचता??
✍?स्व- रचित
“सपना अरोरा”
(बैंकॉक)