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7 Jun 2023 · 2 min read

माला के जंगल

कुछ तपस्वी से लगते हैं
शांत भाव से तप करते हैं
हरे भरे तरोताजा से
प्रफुल्लित मन खड़े रहते हैं ।
कुछ बुझे – बुझे मुरझाये से हैं
कुछ झाड़ बन चिड़चिड़ाए से हैं
लिये रूप विभिन्न अनोखे से हैं
ये माला के जंगल ।

कहीं घने घने से मिले जुले से
मित्र भाव से खड़े हुए से ,
कुछ सूखे से झाड़ी बनकर
उलझे – उलझे फंसे – फंसे से
कभी दूर – दूर बिखरे – बिखरे से
लड़ – झगड़कर मुँह बनाये से
मानो एक दूजे से रूठे हैं
ये माला के जंगल ।

कुछ छोटे और बड़े लंब से
कुछ ऊँचे खडे हुए खंभ से
कहीं – कहीं टेढे़ – मेढे़ से
ऊपर – नीचे उलटे – सीधे से
मोटे – पतले लगते विलोम से
फिर भी कैसे मिले – जुले से
हैं बड़े मनोहर प्यारे – प्यारे
ये माला के जंगल ।

कहीं बांस के झुंड खड़े हैै
कहीं साल ,सीसम , सागौन मिले है
अलग – अलग कुनबों से होकर भी
एक दूजे के संग पले हैं
सतरंगी फूलों से शोभित
लिये महक सराबोर हुए हैं ।
बहु सुगंधित , करते मोहित
ये माला के जंगल ।

जगह – जगह बंगाली बस्ती
उनके बीच मवेशी मस्ती
सियार, लोमड़ी, भालू, चीता
घूम घूम दिन इनका बीता
सांभर, चीतल, काकड़ ,पाड़ा
कितने हिरनों का जमवाड़ा ।
रेल बीच से है रही निकल
ये माला के जंगल ।

बात यहाँ की और विशेष
मिले यहाँ पर कुछ अवशेष
मेरे पूर्वज यह कहते थे
राजा “बेनि” यहाँ रहते थे
बहती माला नदी किनारे
सिद्ध आश्रम चलते भंडारे
करते बाबा सबका मंगल
ये माला के जंगल ।

डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)

Language: Hindi
2 Likes · 313 Views
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