मालपुआ
कोई भी उत्सव पकवानों/व्यंजनों के पूर्ण नहीं होता है। उत्सव में इन्हें नेवतना आवश्यक हो जाता है । यह पकवान ही हैं, जो उत्सव को सम्पूर्ण बनाते हैं और आकर्षक भी । इसलिए अयोध्या के मालपुए को नेवत रहा हूँ। कहते हैं राम को केसर भात, केसर खीर, कलाकंद, बर्फी, गुलाब जामुन जैसे व्यंजन/मिठाइयाँ पसंद थीं।.. और मालपुआ ? मालपुआ या मलपुआ तो अयोध्या में समाया है। यह पुआ ही है जो चासनी और रबड़ी के साथ मिलने पर इठलाते हुए मालपुआ बन जाता है। अयोध्या पधारने पर यह मालपुआ स्वागत में सदैव तत्पर रहता है। यह अयोध्या का लोकप्रिय पारम्परिक व्यंजन है । यह आटे या मैदे, दूध और चीनी के घोल से बनता है। घोल में सौंफ ,इलायची और नारियल का टुकड़ा भी उपलब्धता के अनुसार मिला दिया जाता है। यह घोल खौलते तेल में सुर्ख लाल होने तक तला जाता है । यह पुआ होता है। उत्तर प्रदेश, विशेषकर पूर्वांचल में घर-घर में पुआ समाया है। कुछ लोग इसे भरुआ लाल मिर्च के साथ भी खाते हैं । पुआ चासनी में डूबकर रबड़ी के मिलन से मालपुआ हो जाता है। होली और अन्य त्योहारों में अयोध्यावासी मालपुए के स्वाद में डूब जाते हैं, तर हो जाते हैं। मालपुआ सबके लिए है । मालपुए को शिकायत है उनसे जो इसकी हुनर को चुराकर ब्रेड से शाही टुकड़ा बना दिए और लोगों की ज़ेब से पैसा निकाल रहे हैं । इसे अपने छोटे भाई गुलगुले से कोई परहेज़ नहीं है। बच्चे के जन्म के बाद छठीआर में भी कहीं–कहीं मालपुआ बनता है और गुलगुला भी। बहरहाल मालपुआ अयोध्या के अन्य पारम्परिक व्यंजनों के साथ आपके स्वागत में है। चाट-फाट तो मिलेगा ही, पूरी कचौरी भी । परन्तु मालपुआ का स्वाद लेने वाले ही समझेंगे इस पारम्परिक विरासत को, जिसे नेवता जाना चाहिए तमाम व्यंजनों की चकाचौध में ।