मार न सकता कोई
वह मरने से डरता जिसकी, प्रज्ञा रहती सोई।
जिसको जीना आता उसको, मार न सकता कोई।।
उसे न बाधा-विघ्न सताते, जो हॅंसहॅंसकर जीता।
मरना उसे न दुख देता जो, सुधा कर्म की पीता।।
गीता का नवनीत मिला है, सारा ज्ञान बिलोई।
जिसको जीना आता उसको, मार न सकता कोई।।
सर्वभूतहित कर्मनिरत जो, उसे न मृत्यु डराती।
आत्मा के अमरत्व की कथा, मानस में बस जाती।।
अज्ञानी ही रोते – धोते, अपने नयन भिगोई।
जिसको जीना आता उसको, मार न सकता कोई।।
कर्मभूमि के कृषक बनें हम, करें सुकर्म बुवाई।
मनोविकारों – दुर्व्यसनों की, करते रहें निकाई।।
फसल मिलेगी मनमानी यदि, मेहनत गई निचोई।
जिसको जीना आता उसको, मार न सकता कोई।।
करते रहें प्रयत्न अनवरत, बढ़ें प्रति कदम आगे।
यत्नशील का भाग्य एक दिन, सदा सर्वदा जागे।।
हम कबीर बन रहें राॅंधते, अपनी मधुरा लोई।
जिसको जीना आता उसको, मार न सकता कोई।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी