मार डाला ज़मीर
मार डाला ज़मीर कर दिया मुझे बेजुबाँ
सरहदों पर आज भी मिलते खूँ के निशाँ
हो सके तो मेरा वतन महफूज रखना तुम
मुझ परिंदे को उड़ाकर जलाया मेरा मकाँ
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से
मार डाला ज़मीर कर दिया मुझे बेजुबाँ
सरहदों पर आज भी मिलते खूँ के निशाँ
हो सके तो मेरा वतन महफूज रखना तुम
मुझ परिंदे को उड़ाकर जलाया मेरा मकाँ
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से