Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Aug 2023 · 5 min read

मार्तंड वर्मा का इतिहास

मार्तंड वर्मा त्रावणकोर के महाराजा थे। उन्हें आधुनिक त्रावणकोर का निर्माता कहा जाता है। उनके पिता का नाम राघव वर्मा तथा माँ का नाम कार्तिक तिरूमला था। 1729 से लेकर 1758 तक वे आजीवन वहाँ के शासक बने रहे। प्रारंभिक दिनों में मार्तंड वर्मा एक छोटी सी रियासत वेनाद के शासक थे, उस समय केरल कई छोटी-छोटी रियासतों में बँटा हुआ था। मार्तंड वर्मा ने इन सभी का एकीकरण किया। उसने अत्तिंगल, क्विलोन और कायाकुलम रियासतों को जीतकर अपने राज्य की सीमा बढ़ाई। अब उनकी दृष्टि त्रावणकोर पर थी, जिनकी डचों से मित्रता थी। डच वर्तमान नीदरलैंड के निवासी थे। भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से इन लोगों ने 1605 ई. में डच ईस्ट इंडिया कंपनी बनाया और केरल के मालावार तट पर आ गए। ये लोग मसाले, काली मिर्च व शकर इत्यादि का व्यापार करते थे। धीरे-धीरे इन लोगों ने श्रीलंका, केरल, कोर मंडल, बंगाल, वर्मा और सूरत आदि में अपने व्यापार का विस्तार कर लिया। साम्राज्यवादी लालसा के कारण इन लोगों ने अनेक स्थानों पर अपने किलों का भी निर्माण करवाया तथा सेना का भी गठन किया। श्रीलंका तथा त्रावणकोर इनके मुख्य केंद्र थे। स्थानीय कमजोर राजाओं को पराजित करके डचों ने कोचीन तथा क्विलोन पर भी अपना अधिकार कर लिया था।
वर्मा की बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुए श्रीलंका में स्थित डच गवर्नर इम्होफ्फ ने उन्हें एक पत्र लिखा, जिसमें उनके द्वारा कायाकुलम पर अधिकार करने पर अप्रसन्नता व्यक्त की गई। इस पर मार्तंड वर्मा ने जवाब दिया कि ‘राजाओं के कामों में दखल देना तुम्हारा काम नहीं, तुम लोग केवल व्यापारी हो और व्यापार करने तक ही सीमित रहो। इसके कुछ समय बाद मार्तंड वर्मा ने त्रावणकोर पर भी अधिकार कर लिया। इस पर डच गर्वनर ने मार्तंड वर्मा को त्रावनकोर खाली करने का परामर्श दिया, साथ ही यह भी चेतावनी दी कि यदि उन्होंने त्रावणकोर खाली नहीं किया तो उन्हें डचों की सेना का सामना करना पड़ेगा। इस पर मार्तंड वर्मा ने उत्तर दिया कि ‘यदि डच सेना मेरे राज्य में आई तो उसे पराजित किया जाएगा और मैं यूरोप पर भी आक्रमण करने का विचार कर रहा हूँ’। इसका विरोध करते हुए डच गवर्नर इम्होफ्फ ने पराजित त्रावणकोर की राजकुमारी स्वरूपम्ब को त्रावणकोर की शासिका घोषित कर दिया। इस पर मार्तंड वर्मा ने मालावार में स्थित डचों के समस्त किलों पर अधिकार कर लिया। इसके प्रत्युत्तर में डच गवर्नर के आदेश से मार्तंड वर्मा पर आक्रमण करने के लिए श्रीलंका, बंगाल, कोर मंडल व वर्मा से 50,000 की एक विशाल डच नौसेना को एकत्रित करके कमांडर दी-लेननोय कोलंबो से त्रावणकोर की राजधानी पद्मनाभपुर की ओर आगे बढ़ा। डच सेना ने कोलाचेल बीच पर अपना कैंप लगाया, जहाँ से मार्तंड वर्मा की राजधानी पद्मनाभपुर केवल 13 किलोमीटर दूर थी। डच समुद्री जहाजों ने त्रावणकोर की समुद्री सीमा को घेर लिया, उनकी तोपें लगातार नगर पर बमबारी करने लगीं। डचों ने समुद्र से कई हमले किए। तीन दिनों तक लगातार नगर पर गोले बरसते रहे, नगर खाली हो गया। अब राजा को विचार करना था कि उनकी सेना कैसे डच सेना का सामना करे। कहते हैं कि लड़ाई संसाधनों से नहीं वरना हिम्मत, मनोबल और साहस से जीती जाती है। विस्मित कर देनेवाली रणनीति का इसमें विशेष योगदान होता है। डच सेना तोपों से गोलाबारी कर रही थी, लेकिन मार्तंड वर्मा ने एक विस्मित कर देनेवाली रणनीति का सहारा लिया। उन्होंने नारियल के कई पेड़ कटवाए और फिर उन्हें बैलगाड़ियों पर इस तरह लगवा दिया कि जैसे लगे तोपें तनी हुई हैं। डच सेना की रणनीति थी कि वे पहले समुद्र से गोलाबारी करते थे, उसके बाद उनकी सेना धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए खाइयाँ खोदतीं और किलेबंदी करती थीं। इस प्रकार वे धीरे-धीरे भूमि पर अपना अधिकार करती हुई आगे बढ़ती थीं, लेकिन मार्तंड वर्मा की नकली तोपों के डर से वे आगे न बढ़ सकीं। उधर मार्तंड वर्मा ने डच सेना का सामना अपनी वीर नायर नौसेना से किया और डच नौसेना को कन्याकुमारी के पास कोलाचेल के समुद्र में घेर लिया। कई दिनों के भीषण समुद्री संग्राम के बाद 31 जुलाई, 1741 को मार्तंड वर्मा विजयी हुए। डचों ने केरल के मछुआरों को अपने साथ मिलाने के लिए लालच दिया, लेकिन वे अपने राजा के साथ जुड़े रहे और उन्होंने त्रावणकोर की सेना का पूरा साथ दिया। मार्तंड वर्मा ने अंतिम लड़ाई के लिए मानसून का समय चुना था, ताकि डच सेना फँस जाए और उन्हें कोच्चि या श्रीलंका से सहायता न मिल सके। वही हुआ भी, डच सेना पर मार्तंड वर्मा की सेना ने प्रभावी आक्रमण किया और उनके हथियारों के गोदाम को उड़ा दिया गया। इसके बाद यूरोप की सबसे शक्तिशाली कंपनी की सेना ने भारत के एक छोटे से राज्य के सामने घुटने टेक दिए। इस महान् विजय की स्मृति में कोलाचेल में एक स्मारक का भी निर्माण किया गया। इस युद्ध में लगभग 11,000 डच सैनिक बंदी बनाए गए। शेष डच सैनिक इस युद्ध में हताहत हुए। डच कमांडर दी-लेननोय, उपकमांडर डोनाल्ड तथा 24 डच जलसेना टुकड़ियों के कप्तानों को मार्तंड वर्मा की सेना ने बंदी बना लिया और उन्हें महाराज के सामने प्रस्तुत किया। राजा ने उन्हें कैदी बनाकर आजीवन कन्याकुमारी के पास उदयगिरी के किले में बंदी बना कर रखा। अपनी जान बचाने के लिए इनका गवर्नर इम्होफ्फ श्रीलंका से भाग गया। कोलाचेल की लड़ाई में महाराजा मार्तंड वर्मा को डचों पर जो निर्णायक विजय प्राप्त हुई। वह अद्वितीय थी। विश्व के इतिहास में ऐसी युक्ति प्रधान लड़ाई अन्यतम है, इससे पहले कभी भी अंग्रेजों को ऐसी पराजय नहीं मिली थी। बाद में बंदी बनाए गए 11,000 डच सैनिकों को नीदरलैंड जाने और कभी भारत न आने की शर्त पर वापस भेज दिया गया। इसे नायर नौसेना की निगरानी में अदन तक भेजा गया। वहाँ से डच सैनिक यूरोप चले गए। इसके कुछ वर्षों बाद कमांडर दी-लेननोय और उप कमांडर डोनाल्ड को राजा मार्तंड वर्मा ने इस शर्त पर क्षमा किया कि वे आजीवन राजा के सेवक बने रहेंगे तथा उदयगिरी के किले में उनके सैनिकों को आधुनिक सैन्य पद्धति का प्रशिक्षण देंगे। इस प्रकार नायर सेना यूरोपीयन युद्ध कला में प्रवीण हो गई। उदयगिरि के किले में ही कमांडर दी-लेननोय की मृत्यु हुई और वहीं उनकी समाधि भी बनाई गई। मार्तंड वर्मा की इस विजय से डचों को भारी क्षति पहुँची और इस क्षेत्र में उनकी शक्ति क्षीण हो गई। डचों पर विजय के पश्चात् महाराज मार्तंड वर्मा की शक्ति बढ़ती गई और शीघ्र ही उनका साम्राज्य एक समृद्धिशाली राज्य बन गया। उनके साम्राज्य में जनकल्याण के अनेक कार्य किए गए। कृषि-सुधार पर ध्यान दिया गया तथा कई बाँधों का निर्माण करवाया गया तथा नहरें बनवाई गई, जो आज भी अपनी सेवाएँ अर्पित कर रही हैं। 03 जनवरी, 1750 ई. को राजा मार्तंड वर्मा ने त्रावणकोर के राज्य को भगवान् श्री पद्मनाभ को समर्पित कर दिया और उनके एक सेवक के रूप में राज्य की बागडोर सँभाला। इस प्रकार त्रावणकोर साम्राज्य भगवान् श्री पद्मनाभ की संपत्ति बन गया व राजपरिवार के पुरुष पद्मनाभ दास तथा महिलाएँ पद्मनाभ सेविका के रूप में जानी जाने लगीं। मार्तंड वर्मा ने अपने साम्राज्य में एक नई प्रथा प्रारंभ की। राज्य का उत्तराधिकारी बहन के बेटे, अर्थात् भतीजे को बनाया जाने लगा। इससे महिलाओं के सम्मान में वृद्धि हुई। इस क्रम में उन्होंने अपने भतीजे महाराज कर्थिका तिरूनाल रामवर्मा धर्म राजा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 7 जुलाई, 1758 ई. को भारत माता के इस यशस्वी श्री पद्मनाभ दास का निधन हो गया। स्वतंत्रता के पश्चात् त्रावनकोर की सेना को मद्रास रेजिमेंट की नौवीं बटालियन के रूप में भारतीय सेना में सम्मिलित कर लिया गया।

1 Like · 409 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तन, मन, धन
तन, मन, धन
Sonam Puneet Dubey
कवि के हृदय के उद्गार
कवि के हृदय के उद्गार
Anamika Tiwari 'annpurna '
दिनकर/सूर्य
दिनकर/सूर्य
Vedha Singh
मैं मजदूर हूं
मैं मजदूर हूं
हरवंश हृदय
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के
Satish Srijan
चंद अश'आर ( मुस्कुराता हिज्र )
चंद अश'आर ( मुस्कुराता हिज्र )
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
**तुझे ख़ुशी..मुझे गम **
**तुझे ख़ुशी..मुझे गम **
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
हमेशा अच्छे लोगों के संगत में रहा करो क्योंकि सुनार का कचरा
हमेशा अच्छे लोगों के संगत में रहा करो क्योंकि सुनार का कचरा
Ranjeet kumar patre
फिर कुछ अपने
फिर कुछ अपने
Chitra Bisht
नई नसल की फसल
नई नसल की फसल
विजय कुमार अग्रवाल
ये लोकतंत्र की बात है
ये लोकतंत्र की बात है
Rohit yadav
थक गये चौकीदार
थक गये चौकीदार
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
कठिन समय आत्म विश्लेषण के लिए होता है,
कठिन समय आत्म विश्लेषण के लिए होता है,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
*हमेशा साथ में आशीष, सौ लाती बुआऍं हैं (हिंदी गजल)*
*हमेशा साथ में आशीष, सौ लाती बुआऍं हैं (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
यकीं के बाम पे ...
यकीं के बाम पे ...
sushil sarna
नए साल का सपना
नए साल का सपना
Lovi Mishra
ଅତିଥି ର ବାସ୍ତବତା
ଅତିଥି ର ବାସ୍ତବତା
Bidyadhar Mantry
"तेरी नजरें"
Dr. Kishan tandon kranti
जज्बात लिख रहा हूॅ॑
जज्बात लिख रहा हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
"You can still be the person you want to be, my love. Mistak
पूर्वार्थ
सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना
Neeraj Mishra " नीर "
इज़राइल और यहूदियों का इतिहास
इज़राइल और यहूदियों का इतिहास
अमित
इक सांस तेरी, इक सांस मेरी,
इक सांस तेरी, इक सांस मेरी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
उस सावन के इंतजार में कितने पतझड़ बीत गए
उस सावन के इंतजार में कितने पतझड़ बीत गए
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
वादा
वादा
Bodhisatva kastooriya
अक्सर हम ऐसा सच चाहते है
अक्सर हम ऐसा सच चाहते है
शेखर सिंह
..
..
*प्रणय*
अधिकार जताना
अधिकार जताना
Dr fauzia Naseem shad
𑒫𑒱𑒬𑓂𑒫𑒏 𑒮𑒧𑒮𑓂𑒞 𑒦𑒰𑒭𑒰 𑒏𑒹𑒿 𑒯𑒧 𑒮𑒧𑓂𑒧𑒰𑒢 𑒠𑒻𑒞 𑒕𑒲 𑒂 𑒮𑒲𑒐𑒥𑒰 𑒏 𑒔𑒹𑒭𑓂𑒙𑒰 𑒮𑒯𑒼
𑒫𑒱𑒬𑓂𑒫𑒏 𑒮𑒧𑒮𑓂𑒞 𑒦𑒰𑒭𑒰 𑒏𑒹𑒿 𑒯𑒧 𑒮𑒧𑓂𑒧𑒰𑒢 𑒠𑒻𑒞 𑒕𑒲 𑒂 𑒮𑒲𑒐𑒥𑒰 𑒏 𑒔𑒹𑒭𑓂𑒙𑒰 𑒮𑒯𑒼
DrLakshman Jha Parimal
"राहों की बाधाओं से ,
Neeraj kumar Soni
Loading...