मारी – मारी फिर रही ,अब तक थी बेकार (कुंडलिया)
मारी – मारी फिर रही ,अब तक थी बेकार (कुंडलिया)
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मारी – मारी फिर रही ,अब तक थी बेकार
दिन – भर लेते – छोड़ते ,साँसें कई हजार
साँसें कई हजार , नहीं कीमत पहचानी
जब साँसें दुश्वार ,अमोलक तब यह जानी
कहते रवि कविराय ,साँस की महिमा भारी
कभी न कहना बंधु , फिर रही मारी – मारी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451