मारने और मरवाई का फर्क
संस्मरण
मारना आसान है मरवाई भारी है
यह बात उन दिनों की है जब मैं चिकित्सा अधिकारी के पद पर तैनाती के दिनों में होली से दो-तीन दिन पहले पोस्टमार्टम की ड्यूटी कर रहा था और पोस्टमार्टम हाउस के ड्यूटी रूम में बैठा था ड्यूटी पर तैनात फार्मासिस्ट ने मुझको बताया कि आज 14 लाशें पोस्टमार्टम के लिए आई हैं जिनमें से कि 13 लाशें अग्न्यास्त्रों ( fire arms injury ) द्वारा दी गई चोटों के कारण हुई हैं । उसकी यह बात सुनकर मेरे मुंह से बेसाख़्ता निकल गया –
‘ अरे क्या किसी को गोली मारना इतना आसान है ‘
प्रत्योत्तर में मुझे अपने पृष्ठ से आवाज सुनाई दी –
‘ अरे साहब मारना बहुत आसान है मरवाई भारी पड़ती है ‘
मैंने पलट कर देखा तो सहम गया उसी कमरे में भारीभरकम दो – चार जाट टाइप के लोग मेरे पार्श्व में खड़े थे , ये उन्हीं की आवाज़ थी । मुझे इस बात का कोई आभास नहीं था कि उस कमरे में मेरे अलावा और भी कोई है ।
मैंने उनसे पूछा – ‘क्या मतलब ? ‘
वह बोला –
‘ हमारे लिए मारना बहुत आसान काम है , हमारे पास सारा इंतजाम है । असलहा है सारे हथियार हैं आप जिसे जब जहां कहो हम वहीं उसे ठोक दें , हमारे लिए यह आसान सा दो मिनट का काम है । पर साहब ये मरवाई बड़ी भारी पड़ती है बस इसे कोई उठा ले ‘
मैंने पूछा –
‘ यह मरवाई से क्या मतलब है ? ‘
वो बोला
‘ मरवाई यही कि मारने के बाद ये जो पोस्टमार्टम के लफड़े पुलिस के रगड़े वकीलों और जजों के ख़र्चे और नखरे कोई झेल ले , जो मारने से ज़्यादा भारी पड़ते हैं । ‘
उसके आसपास जो और अन्य लोग खड़े थे वह भी एक दूसरे को देख कर के सहमति के भाव में सिर हिला रहे थे ।
तभी फार्मेसिस्ट ने मुझे बताया कि – यह इस इलाके के लोगों में रीति प्रचलित है कि ये किसी से बदला लेने के लिए कसम खाते हैं और अपनी कसम पूरी करने के लिए पहले अपनी होली अपने दुश्मन के खून की होली से खेलते हैं फिर अपनी रंगों की होली मनाते हैं ।’
मैं उसकी यह बात सुनकर और सहम गया मैंने अपने व्यवहार में बिना कोई कोई बदलाव किए तटस्थ भाव से साथ आए पुलिस के कॉन्स्टेबल को इशारा कर पोस्टमार्टम करवाने साथ आये रिश्तेदारों को ड्यूटी रूम से बाहर करने को कहा और फार्मेसिस्ट को पोस्टमार्टम करवाने के लिए । पर मेरा मन उनके उसी कथन पर अटका था कि मारना आसान है मरवाई भारी है ।