मायूसी की हद
जाहिर है हम तुम थे अजनबी ,
हमारी चाहत की तुम्हें भला कैसे खबर होती।
तुम ना निकल पड़ते गर कज़ा की राहों पर ,
तो जिंदगी यूं मायूसी के हद से ना गुजरी होती।
जाहिर है हम तुम थे अजनबी ,
हमारी चाहत की तुम्हें भला कैसे खबर होती।
तुम ना निकल पड़ते गर कज़ा की राहों पर ,
तो जिंदगी यूं मायूसी के हद से ना गुजरी होती।