मायूसियों से भरे चेहरे…!!!!
मायूसियों से भरे यहां सभी के चेहरे हैं
बंदिशे हैं कुछ हमीं पर ,कुछ सामाजिक पहरे हैं
कुछ जिंदगियों के घाव बड़े गहरे हैं
ये तो दोहरे नक़ाब वाला ज़माना हो गया
षड्यंत्रों में यूं झुलस गई एक ज़िंदगी
पता ही न चला अपना कब बेगाना हो गया
हद को भी हद में रहने की ख्वाहिश होने लगी
जब हदें पार करके दरिंदगी भरी यहां साज़िश होने लगी
तमाम ज़िंदगी प्रपंचों का शिकार रही
कुछ यूं घुटती रही वो ज़िंदगी
सही होकर भी बनकर एक गलत क़िरदार रही
दुनिया में इन नकाबपोशों को बेनकाब किया कैसे जाए
कट तो रहा ही है ये सफ़र लेकिन बिना गुनाह के गुनहगार बनकर जिया कैसे जाए
झूठ यूं हावी हुआ कि फ़िर सच हमेशा के लिए विलीन हो गया
सच सम्पूर्ण जीवन के लिए दर्दों का शिकार बना
झूठ का जीवन हमेशा के लिए रंगीन हो गया
– ज्योति खारी