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10 Nov 2020 · 1 min read

माया मिली न राम

हासिल उसको ही हुआ, जिसने किया तलाश।
मेहनत से मुमकिन हुआ, पतझड़ में मधुमास।।

पत्थर भी पिघले वहाँ, जहाँ प्रेम की आग।
जला न जो इस अगिन में, उसके फूटे भाग।।

नीरस हैं वे सब हृदय, जगी न जिनमें प्रीत।
उनको ही फीके लगें , नारायण के गीत।।

राम राम जपते रहे , हुए नहीं निष्काम।
मन माया छाया रही, माया मिली न राम।।

एकहिं नाव सवार जो, सकुशल उतरा पार।
जो दो दो नौका चढ़ा, डूब गया मझधार।।

अपने अनुचित कर्म का, तनिक नहीं अफसोस।
बुरे हश्र पर दे रहे, नारायण को दोष।।

जो औरन की फटी पर , टाँक रहे पैबंद।
ऐसे उत्तम चरित के , लोग जगत में चंद।।

पत्थर था पिघला नहीं, बुझ गयी सारी आग।
सोया रिसना रीझना, जागा मन बैराग।।

जो लातन के भूत हैं, सरल न समुझें बात।
मेधा उनकी खोलती, नारायण की लात।।

मित्र मिला जब मित्र से, दिखा अजब ये हाल।
दोनों थे पहने कबच, ओढ़े नकली खाल।।

दिल इतना खेला गया, सीख गया सब खेल।
बोझ हुए रिश्ते मगर, सकुशल रहा कढ़ेल।।

संजय नारायण

Language: Hindi
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