माया और जीव।
जब किसी भी प्राणी का जन्म होता है।
जैसे ही वह धरती पर आता है, उसे माया अपने बस में कर लेती है। फिर जीव उससे मुक्त होना चाहता है,पर वह मुक्त नही हो सकता है। यही माया मोह का खेल है।जो कभी जीवन रहते खत्म नही होता है। माया से छुटकारा ईश्वर का भजन,तप ही दिला सकता है। फिर जीव कभी माया के चक्कर में नहीं पड़ेगा। यदि ईश्वर की कृपा उस जीव पर होगी,तब वह मोक्ष को भी प्राप्त हो जाता है।जीव वेचारा चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है। और आखिरी में तक कर ईश्वर के शरण में पहुंच कर अनंत प्रार्थना करता है कि ,हे प्रभु मेरी सारी गलतियां माफ कर दिजिए और अपने शरण में ले लिजिए। और मेरा उद्धार कर दिजिए।इस प्रकार जीव बहुत दुखी होता है। और उसे माया छोड़ना नहीं चाहती है।