मायावी संसार
हार सुनिश्चित है, दुनिया में
जीत नहीं होती।
मायावी संसार, वास्तविक
प्रीत नहीं होती।।
धोखे ही धोखे, हैं इसमें
बहुत समस्याएं।
यदि आगे बढ़ना चाहें तो
अगणित बाधाएं।।
सहज सफलता पाने की तो
रीत नहीं होती।
मायावी संसार, वास्तविक
प्रीत नहीं होती।।
किसी-किसी के जीवन में तो
दुख ही दुख होता।
घिरा मुश्किलों से आजीवन
रहता है रोता।।
कठिन भूमिका जन-जन से अभि-
-नीत नहीं होती।
मायावी संसार, वास्तविक
प्रीत नहीं होती।।
शरणागत हो करें प्रार्थना
संकट कट जाते।
सुख-दुख में समरस रहकर ही
प्रसन्नता पाते।।
ऋद्धि-सिद्धि है देन ईश की
क्रीत नहीं होती।
मायावी संसार, वास्तविक
प्रीत नहीं होती।।
शीत और आतप सहकर ही
तरुवर फल देते।
धन्य-धन्य हैं वही, प्रेरणा
जो इनसे लेते।।
हम चाहें भी तो कम गर्मी-
शीत नहीं होती।
मायावी संसार, वास्तविक
प्रीत नहीं होती।।
हारें भी तो हार न मानें
यही विजय अपनी।
मन के हारे हार हमेशा
सर्वोपरि नपनी।।
मन चंगा तो मन-गंगा अपु-
-नीत नहीं होती।
मायावी संसार, वास्तविक
प्रीत नहीं होती।।
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी