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29 Jul 2021 · 1 min read

मायामुक्त

अधरों के रक्त से अपनी वह कंठ भिगोता है
पानी के ना होने को तुम प्यास कहते हो

आंखों की चिंगारी से उसका दीपक जलता है
महज सूर्य के ना होने को तुम रात कहते हो

पत्थरों के सीने पर वह स्दयंदन चलाता है
तुम इंधन गाड़ी में बैठ उसे कंगाल कहते हो

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