मायका
मायका
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मां की ममता बड़ी छांव में,
याद आती है मायका की गांव में।
जब थी आजाद पंछी,
करती थी खूब सारा नौटंकी।
याद आती है ओ पल,
सखी सहेली की थी बड़ी दल।
मानो तोता की पिंजरा में बैठी हूं,
ससुराल की घरौंदा में लेटी हूं।
सोना चांदी आभूषण से सजी हूं,
ममता स्नेह से दुखी हूं।
मां की ममता बड़ी छांव में,
याद आती है मायका की गांव में।
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रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना, बिलाईगढ़, बलौदाबाजार छ.ग.
Mo 8120587822