मायका
मायका
“सुनो जी मैं कहे देती हूं बहनों के प्यार में अंधे होकर अपनी कमाई को यूं पानी की तरह बहाने की कोई जरूरत नहीं है कुछ अपने बीवी बच्चों का भी सोचा करो ये मेरे पास साड़ियां रखी हुई हैं इसे ही अपनी बहनों को देकर तीज त्यौहार की बला टाल लेना, अपने पति रमेश को कुछ साड़ियां दिखाते हुए और ऊंची आवाज में समझाते हुए रमा बोली। रमेश ने एक नजर उन साड़ियों पर घुमाई उसे देख वो समझ गया ये वही साड़ियां हैं जिन्हें रमा को आस पड़ोस वालों के यहां कुछ फंक्शन में जाने पर उपहार स्वरूप दिए थे और उसे बिलकुल पसंद नहीं आए थे लेकिन अपनी पत्नी के इस ऊंचे स्वर के सामने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका और उसने चुप ही रहना उचित समझा।
रमेश तीन बहनों का इकलौता भाई था और एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत था। रमेश की पत्नी रमा को यूं तो कभी किसी चीज की कमी नहीं हुई थी लेकिन जब भी वो रमेश की बहनों को मायके आया देखती थी उसके सुर बदल जाते थे और वो रमेश के लिए भड़कती रहती कि अपनी बहनों के लिए इस घर की सुख शांति को दांव पर लगाकर सब कुछ लुटा दो और न जाने क्या क्या कहती।
रमेश अपनी पत्नी का स्वभाव जानता था इसलिए उसको नजरअंदाज करता था और कुछ कहता भी नहीं था। कुछ दिनों बाद ही तीज त्यौहार आ गए और उसमें रमेश की तीनों बहनें अपने मायके यानि रमेश के घर आई जहां रमेश ने तो हंसकर उनका स्वागत किया लेकिन रमा का चेहरा बदल गया था। रमेश की बहनें भी कुछ कुछ रमा के स्वभाव को जानती थी इसलिए उन्होंने उसका बुरा भी नहीं माना।
रमा उन सबको आए देखकर कुडबुड़ाती हुई अपने कमरे में चली गई और रमेश से कहने लगी देखो मैं कहे देती हूं जो मेरी बचत के पैसे फिजूल में अपनी बहनों पर खर्च किए तो, ये सभी आ गई मुंह उठाकर तीज त्यौहार के बहाने पैसे ऐंठने।
रमा की इन बातों को रमेश की बहनों ने सुन लिया और अब उनसे ये सब बर्दाश्त नहीं हुआ और रमेश की बड़ी बहन बोल पड़ी, देखो भाभी हम सब यहां कोई पैसे ऐंठने नहीं आते हैं वो तो हमें अपने मायके से लगाव है और अपनेपन की चाह में हम यहां आ जाते हैं। जरा तुम ही सोचो अगर ऐसा बर्ताव आपके मायके में आपकी भाभी करे तो आपको कैसा लगेगा और क्या वैसे में आप अपने मायके जा पाओगी, नहीं ना……और फिर बिना मायके के आप खुद अकेले पड़कर ससुराल में सिमटकर रह जाओगी।
उसकी ये बातें रमा को समझ में आ गई और वो आंसू बहाते हुए उनसे माफी मांगने लगी, फिर उन्होंने रमा को माफ करते हुए गले लगा लिया और ये सब देखकर रमेश के चेहरे में भी मुस्कान आ गई। अब रमा को समझ आ गया था कि हर बेटी के दिल में मायके से लगाव आजीवन बना रहता है और मायके से स्नेह अपनापन पाना उसका अधिकार भी होता है।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर”सोनकर जी”,
रायपुर छत्तीसगढ़