मामी
नमन मंच
दिनाँक 392021
विधा रेखा चित्र
मामी
चक्की वाली
कभी कभी हमें जीवन के कटु सत्य से भी गुजरना पड़ता है। यूँ भी यह जीवन जीना हर व्यक्ति के लिए सुलभ नहीं होता। चक्की वाली मामी बहुत ही सुंदर व सुशील व्यक्तित्व वाली महिला थीं। उस घर मे केवल 4 बेटे थे परन्तु तीन की बहुत अधिक उम्र हो गई थी शादी नही हुई। नानी बहुत अच्छी थीं लेकिन उनका भी अब बुढापा आ गया था।जैसे तैसे सबसे छोटे लड़के की शादी हुई और मामी का आगमन पूरे घर के लिए तारे तोड़ने जैसा आभास करा गया।
मामी क्या थीं चाँद का टुकड़ा थीं। गोरा रँग , गोल चेहरा ,बड़ी बड़ी आँखें , पतले होंठ,चौड़ा माथा,उसपर बड़ी सी मैरून रँग की बिंदी। काले घने लंबे बाल।हाथों में भर भर के पहनीं हुई चूड़ियाँ, हाथों में नेल पेंट , पैरों में हमेशा महावर लगा रहता था।कुल मिला कर उनका पूरा व्यक्तित्व लुभावना था। हम दोनों बहिन वहीं रहती।कहना भी वहीं खा लेतीं थीं।इन सबसे बढ़िया थे उनके काम जो बहुत ही बढ़िया लगते थे। घर की सजावट की सभी वस्तुएं वह बढ़े शौक से बनातीं थीं व गली की सभी लड़कियों को सिखाती भी थीं। हम लग बी उनके इन कार्यो को बहुत ध्यान से देखतीं थीं व सीखती थीं। बोतलों मे रँग बिरंगी बॉल घुसना, तार के फूल बनाना , साइकिल की बेकार ट्यूब को इक्वल साइज का काटकर उससे हाथी, पिल्ले,ऊँट इत्यादि बनाना। महीन प्लास्टिक के तारों से पर्स,बैग बड़े बड़े थैले बनाना,पूरी सिलाई करना। बैठने के आसन बनाना।पूरे दिन व्यस्त रहना। मैन भी हर चीज को बड़े ध्यान से सीखा।मामी सबकी सखी थीं। सभी तरह की बाते लड़कियां उनसे कर लेतीं थीं
छुट्टियों में जब ननिहाल जाना हुआ तो मुझे उनको देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सुबह के 4 घण्टे वहीं बीतते। कुछ दिनों बाद अधिकतर लड़कियों की शादियाँ हो गई। ममी की भी तीन लड़कियों की शादी हो गई। एक रह गई।अब साल में कभी उनके पास जाना होता धीरे धीरे समय बीता अब जिंदगी बहुत कुछ बदल गई थी। एक दिन मैंने मामी को फोन किया कि मैं गांव रही हूँ आप मुझसे मिलो आपसे मिलने व देखने की बहुत इच्छा है। वह उस समय लखनऊ थीं। वह मुझसे मिलने आई भी ।परन्तु बहुत दुखी और उदास थीं। मेरे पूंछने पर उन्होंने बताया कि उनको लिवर कैंसर हुआ है। मैं भी दुखी हुई
उसके 6 माह बाद वे भगवान को प्यारी हो गईं।आज भी मुझे उनकी बहुत याद आती है।
प्रवीणा त्रिवेदी प्रज्ञा
नई दिल्ली 74