माफ़ी/क्षमा
माफ़ी/क्षमा
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कभी कुछ गलती होती,
सदा हरेक इंसान से,
किंतु स्वयं को सुधारे वह,
‘माफ़ी’ व क्षमादान से।
‘माफ़ी’ जो कभी मांगे ,
उसका कल्याण करो,
सामर्थ्य के अनुरूप ही,
तुम ‘क्षमा’ दान करो।
क्षमा से उसे सुधरने का,
एक निज मौका दो,
अपनी दानशीलता उसे,
तुम जरूर दिखला दो।
उसकी गतिविधि पर,
रखो जरूर ही नजर,
तेरी ‘क्षमा’ व ‘माफ़ी’ से,
वह जायेगा जरूर सुधर।
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स्वरचित सह मौलिक;
…….✍️पंकज कर्ण
…………कटिहार।।