मान लें।
मान लें गुस्ताखियां तो पाक हो जाते हैं लोग।
रौशनी पहलू में ले शफ़्फ़ाक हो जाते हैं लोग।
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कई सदियाँ लगती हैं नज़रों में आने के लिये।
एक लम्हे में ही गिरकर ख़ाक हो जाते हैं लोग।
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सौ तरह के ज़ुल्म करते सौ तरह की गलतियां।
और इक चादर चढ़ाकर पाक हो जाते हैं लोग।
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बारहा शमशीर से अपने बदन कटते नहीं।
एक तीखे लफ्ज़ से पर चाक हो जाते हैं लोग।
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वक्त उनमें धीरे धीरे ज़हर भरता रहता है।
लोग कहते पल में खतरनाक हो जाते हैं लोग।
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मुश्किलों के दरिया जब भी घेरते हैं दहर को।
डूबते हैं लोग कुछ तैराक हो जाते हैं लोग।
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तेज़ रखना ” नज़र” अपनी नज़र को इस दौर में।
देखते ही देखते चालाक हो जाते हैं लोग।
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कुमारकलहंस,