मान रख आना पड़ा मुझको तेरी मनुहार पर.
छंद- गीतिका
मापनी- 2122 2122 2122 212
समांत- आर
पदांत- पर
मान रख आना पड़ा मुझको ते’री मनुहार पर.
हैं समर्पित गीतिका मेरी ते’रे शृंगार पर.
शोभते मणिबंध, कंकण, उर कनक हारावली,
कंचुकी का भेद लिखती, वर्णिका अभिसार पर.
रूप यौवन को लिखूँ, गजगामिनी हो नायिका,
पंक्तिका कैसे लिखूँ मैं, किंकणी यलगार पर.
रेशमी पल्लव व्यथित हैं, हाथ में थामे हुए
कर्णफूलों से सजी अलकावली हैं द्वार पर.
अंगरागों से हुई सुरभित ते’री महफिल प्रिये,
धन्य मैं जो लिख सका इक, गीतिका गुलनार पर.