”मान जाया करो”
कविता-22
हर रोज़ रूठो मगर जल्दी मान जया करो ,
ये हक है तुम्हारा ना सकुचाया करो ।
मैं सिर्फ तुम्हारा हूँ मुझपे भरोसा करो ,
चलो मेरे साथ, ज़िद छोड़ो ,मान जाया करो ।
यूँ तो गुस्से में तुम अच्छी नहीं लगती हो ,
इसलिए गुस्से में भी मुस्कुराया करो ।
मैं मनाता रहूँगा यूँ ही , तुम रूठा करो ,
मगर जल्दी मान जाया करो।
मेरे दिल में बसी मेरी चाहत हो ,
मेरी हर उमंग हो इसलिए खुश रहा करो ।
हर रोज़ रूठो मगर जल्दी मान जया करो ,
ये हक है तुम्हारा ना सकुचाया करो ।