“मानुष असुर बन आ गया”
“मानुष असुर बन आ गया”
कप कपाती इस धरा पर , धूल बन कर छा गया।
भेष में ले भ्रष्टपन, मानुष असुर बन आ गया ।।
जग पर ऐसा जुल्म होता, देख मन घबरा गया
जिस्म जलकर राख हो, वो कालखण्ड अब आ गया
कल्पना का वो कलि, शासक क्रूर बन आ गया,
धनाड्ड जहां धन से नहाता, गरीब वहीं दफना गया।।
बांटता हर शक्श खुदको, रंग, बोल और जात में
ना बटे तो बाट लेते, धर्म के जंजाल में।।
धर्म का मकसद छिपाकर, धर्म सेठ बन आ गया
भेष में ले भ्रष्टपन, मानुष असुर बन आ गया।।
✍️ Saransh Singh ‘Priyam’