माना कि आदमी हूँ मैं कोई भला नहीं
ग़ज़ल
माना कि आदमी हूँ मैं कोई भला नहीं।
पर सोचते हो जितना तुम उतना बुरा नहीं।।
ऐसा नहीं है कि मुझसे हुई हैं ख़ता नहीं।
आदम की ज़ात हूँ मैं कोई देवता नहीं।।
जो सोचता कि उसके है सब इख़्तियार में।
कैसे ये भूल जाता कि वो है ख़ुदा नहीं।।
इक वायरस के सामने लाचार सब हुये ।
अब मान लो कि कोई भी रब से बड़ा नहीं।।
दिल में न वह् म पालिये कोई भी अब “अनीस” ।
है लाइलाज ये मरज़ इसकी दवा नहीं।।
– अनीस शाह “अनीस”