माना आज उजाले ने भी साथ हमारा छोड़ दिया।
गज़ल
माना आज उजाले ने भी साथ हमारा छोड़ दिया।
घोर ॲंधेरे से डर के क्या आगे बढ़ना छोड़ दिया।
आंखों में आकाश सजाकर अंतर्मन से उड़ता हूॅं,
तूने पंख कुतर डाले क्या मैंने उड़ना छोड़ दिया।
एक वबा में हम सबने ही कितने अपने खोए हैं।
उनका गम फिर भी जीते हैं किसने जीना छोड़ दिया।
अंधे बहरे लोग जहां हो फर्क कहां कुछ पड़ता है,
एक दुखी बेटी ने हड़कर खेल खेलना छोड़ दिया।
राम नाम की सीढ़ी चढ़कर जो सत्ता तक जा पहुंचे,
उन लोगों ने राम नाम भी अब तो जपना छोड़ दिया।
नफरत के काले बादल सब प्यार महब्बत निगल गए,
‘प्रेमी’ ने भी हर शय को अब गले लगाना छोड़ दिया।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी