मानसून और में विधि
आज सुबह कुछ जल्दी ही नींद खुल गयी, अलसाई नींद में आँख मलते हुए मैं अपने बिस्तर से उठी और अंगड़ाई लेते हुए खिड़की के पास जा पहुंची। देखा, तो खिड़की पर बारिश की बूंदें जमी हुई थीं, कल रात से आ रही तेज बरिश से जैसे यह भी किसी राहगीर की तरह कुछ देर से ठहर जाना चाहती हो। सुबह बिस्तर से उठकर खिड़की तक जाना यह हर रोज़ की आदत थी मेरी। कुछ देर वहीं खड़े होकर कॉलेज हॉस्टल से बाहर की दुनिया को निहारना और आने जाने वालों को देखना बड़ा सुकून देता है। आज पूरा 1 महीना 2 दिन हो गए थे मुझे हॉस्टल आये और इन बीते दिनों में मेरी दोस्ती दो लोगो से हो गयी थी। एक मेरी हॉस्टल मेट मीरा, दूसरा ये बारिश वाला मानसून। और ये दोनों ही मेरे बहुत करीब थे और ये दोनों विपरीत भी। एक तरफ मीरा मुझे अपने घर वालो की याद तक नहीं आने देती इतना बोलती थी ( बड़बोली लड़की )और उतनी ही अच्छी भी थी । और एक तरफ ये मानसून जो मुझे अपनी ओर खींच लेता और ढेर सारी यादो में इन बूंदो से भिगो देता। मैं कुछ और सोच ही रही थी कि इतने में मीरा ने चाय कहते हुए ज़ोर से आवाज लगायी और मेरे पास आ गयी और बोली गीता कौनसी खयालों वाली दुनिया में खोयी हुई हो, कब से आवाज लगा रही हूँ और तू है कि कभी सुनती ही नहीं। ले चाय पी ले ओर मुझे चाय का कप थमा कर अपने मोबाइल को कान से लगाकर हाँ माँ… कहकर बाहर चली गयी और मैं वहीं खिड़की के पास रखी कुर्सी पर बैठ, टेबल पर रखे रेडियो को ऑन कर दिया, रेडिओ पर बजते गीत रिम झिम गिरे सावन ….के साथ चाय की चुस्कियाँ लेते हुए मैं भी गीत गुनगुनाने लगी आधी खुली खिड़की से आती बारिश की फुहार के साथ गीली मिट्टी की खुशबु ने कब मेरा मन मोह लिया पता ही नहीं चला और मैं यादो के पिटारे में गिरफ्त होती चली गयी। मुझे याद आ रही थीं विपुल के साथ बितायी बारिश की वो शामें, जिनमे हम एक छतरी के नीचे आधे भीगते भिगाते हुए चौराहे के दूसरी ओर भुट्टे खाने जाया करते थे। कितने प्यारे दिन थे वो। ये दोस्ती थी या प्यार नही समझ पायी मैं कभी और ना खुद को उससे रिहा कर पायी। उसे गए आज पूरे 1 साल 8 दिन हो गए। बिन बताये चले जाने की कोई तो वजह रही होगी उसकी और मैं बस उसी इंतज़ार में कि कभी वो इन शामों में मेरा साथ निभाने आयेगा मुझे अपने साथ ले जाएगा। उसे याद करते हुए मैंने उसका लिखा एक खत अपने बैग में से निकाला जिसमे उसने मेरे लिए एक कविता लिखी थी।
लिखा था ……….
मेरे सफर की तुम्हे हमसफ़र बनाऊंगा।
खुद रूठ जाऊँ पर तुमको हमेशा हँसाऊँगा।
बिताऊंगा हर वक्त, हर इक लम्हा तुम्हारे साथ।
तुम होगी मैं रहूँगा, और रहेगा जन्मो का साथ।।
आऊंगा लौटकर मैं सब्र तुम रखना ।
अपने आँसुओं को तुम ज़रा रोके रखना।।