मानसिक स्वस्थ
जिंदगी की हर परिस्तिथि को तू, अच्छा बुरा कहता जाता है
क्या अच्छा है, क्या बुरा है, ये तू कैसे बतलाता है?
उमीदें पूरी हो तो अच्छा, उम्मीद टूटे तो हो बुरा
हे इंसान यह बता, तू उम्मीदें कहाँ से लाता है?
पैदा हुए बच्चे को, कुछ कहा ही समझ आता है?
यह समाज जैसे ढाले, वो बच्चा वैसे ही ढल जाता है
फिर भी रोता है दुःख मे, जब भी कोई उम्मीद टूटे
हे इंसान यह बता, तू उम्मीदें कहाँ से लाता है?
भूल जा कुछ पल के लिए, सब कुछ अपने बारे में
नाम, धर्म, देश, और काम, सब रख दे किनारे में
मिटा दे सब फ़र्ज़ी उम्मीदें, तब तेरे समझ भी आएगा
दुःख तो तेरी रचना थी, उम्मीदों का साया था।
दुःख मे रोता है क्यों तू, कब तक ही रो पाएगा?
उम्मीदें तेरी टूटी है, कोई और क्यों दोषी कहलाएगा?
किस आधार पर माना था कि उम्मीदें पूरी होएंगी?
दुःख तो तेरी रचना थी, उम्मीदों का साया था।
बर्बाद कर रहा समय अभी भी तू, फालतू विचारों मे
समय बेहता है रेत की तरह, उंगलियो बीच दरारों से
आ जा वापस वर्तमान मे अब, भविष्य अभी बनाना है
जीवन तो वर्तमान ही होगा, भूत-भविष्य तो विचार-माया है।
आ जा वर्तमान मे, और अपना भविष्य तराश
बाकी सब व्यर्थ है, विचारों से नही पलता परिवार
निकल बाहर विचारों के, अस्तित्व मे कदम उतार
अस्तित्व तो वर्तमान ही होगा, भूत-भविष्य तो विचार-माया है।
क्यों मांगता है भीग हर रोज़, ईश्वर-अल्लाह के दरवाज़े पे,
जब सब उसी ने लिखा है, फिर क्यों शक़ है उसके इरादे पे?
आ जा वर्तमान में, बिना उम्मीदें, बिना विचार,
अस्तित्व बन कर अपना जीवन जी और भविष्य बना
ईश्वर-अल्लाह होगा भी तो वर्तमान ही होगा, भूत-भविष्य तो केवल विचार-माया है।