मानव
मानव मधुराई
खोते पल-पल
जीवन संगीत
मधुर कलरव
खो रहा क्यों
मानव हरपल l
जीवन नींव
जीवन संगीत
मानव चहेरों से
आड़ हुए, मानव
क्यों अपनी झलक से,
विमुख मानव
खोते अपने कर( ही हाथों ) से
चेतन और अचेतन
नोट :-
जब भक्ति व्यक्ति में प्रवेश कर जाती हैं तब वह मानव बन जाता है
_ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार ( भागलपुर ) मेरी स्वरचित कविता1-1-06 की ही रचना है जिसे मैं आज प्रकाशित कर रही हूं।टाइप करने में गलती के बजह से आज फिर टाइप की और प्रकाशित की हूँ । प्लीज लाई क नहीं तो डिस लाइक जरूर करें साथ अपना समालोचना दे ।