मानव
मानव आँखें खोल ले, मची देश में लूट,
सभी ओर विश्वास की , कड़ी रही है टूट।
कड़ी रही है टूट, मिटा भारत का गौरव,
अपने तक ही व्यस्त, स्वार्थी कितना मानव।
मानव आँखें खोल ले, मची देश में लूट,
सभी ओर विश्वास की , कड़ी रही है टूट।
कड़ी रही है टूट, मिटा भारत का गौरव,
अपने तक ही व्यस्त, स्वार्थी कितना मानव।