मानव श्रृंगार।
___________________________
हे प्रभु आंहॉ ओतवि टा दिय,
जहि स भरि सकय इ पेट।
पाहुन आवथि ,नञि रहथि उपासल,
याचको के भरि हम पेट।।
अपना लेल त सभ जीवै अछि,
पर दु:ख बॉटू जुनि बनू आन।
बसुला धार जुनि बनू वावू,
अपना लेल त, जीवैं अछि श्वान।।
मानव हुनके मानू भैया,
पर दु:ख के जे हरि लेथि।
अपन खुशी ताक पर राखि क,
अनकर आनन हॅसि द देथि।।
नर पशु मे ज्ञान उभय गुण,
मुदा विवेक मानव श्रृंगार।
अनका लेल जौं जी सकलौं,
प्रसन्न रहत सगर संसार।।
आशुतोष
१/१०/२०२१