मानव रावण बन घर घर बैठे
मानव रावण बन घर घर बैठे
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पग पग पाँव पसारे हैं बैठे
मानव रावण बन घर घर बैठे
लंकेश्वर का पूतला फूंके
मन में रावण है घर कर बैठे
दानवता की चुनरी को ओढें
मानवता का ढोंग करने बैठे
अबला अब है कहाँ सुरक्षित
सीता को पर नर हरने हैं बैठे
धर्म नाम पर ध्वज फहराते
धर्म में अन्धे अंधर्मी बन बैठे
सत्य पर असत्य हुआ भारी
सत्यमेव जयते को हार बैठै
जन जन हो रहे व्यभाचारी
सच्चे झूठ तले दुबक के बैठे
निर्लज्जता हो गई है हद पार
पद प्रतिष्ठा तार तार कर बैठे
मनसीरत मन हुआ पराजित
हालातों को बेकाबू कर बैठे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़़ी राओ वाली (कैथल)