मानव मन को पीर
कुंडलियाँ – मानव मन को पीर
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धारण करना धैर्य को,
मन नही होय अधीर।
विचलित होने से मिले,
मानव मन को पीर।।
मानव मन को पीर,
हृदय को करता घायल।
चिंतन करो पुनीत,
ज्ञान का बनना कायल।।
कह डीजेन्द्र करजोरि,
त्याग कर दुख का कारण।
आत्मज्ञान का सार,
करो अब मन मे धारण।।
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रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना, बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822