मानव बनाम कोरोना
दंभ भरकर मानव,
बोला कोरोना वाइरस से,
मै धरती का पुत्र, धरती को कुछ ना समझूं,
तो तेरी क्या औकात,जो तेरे से डरूँ।
मैं चाहूँ तो धूप हो,
मैं चाहूँ तो बरसे पानी,
मैं चाहूँ तो बादल गरजे,
रोक दूँ सागर की पानी।
मेरे चाहने से पर्वत भी झुक जाता है,
मेरे चाहने से तुफान भी मुड़ जाता है,
मेरे चाहने से ही चक्रवात रूख बदलता है,
मेरे चाहने से ही संसार में जीवन चलता है।
मेरे सारे रूपों का,
जब दर्शन कर पाओगे,
कहाँ आ गये हो तुम,
खुद ही समझ जाओगे।
मैं ही मानव, मैं ही दानव,
जीवन मेरे बस में है,
चाहूँ तो बर्बाद कर दूँ,
चाहूँ तो आबाद कर दूँ।
तकनीकी है मेरा साथी,
साथ हमेशा देता है,
मैं चाहूँ जीवन जैसा,
वैसा ही बना देता है।
जब चाहूँ तो बम बरसाउँ,
जब चाहूँ तो आग लगाउँ,
जब चाहूँ तो उड़ जाउँ,
जब चाहूँ तो डूब जाउँ।
अम्बर में घर बनाता हूँ,
घर में अम्बर बनाता हूँ,
पाताल में भी जैसा चाहूँ,
वैसा जीवन बना लेता हूँ।
मैं प्रकृति का पुत्र, प्रकृति को कुछ ना समझूँ,
तो तेरी क्या औकात, जो तेरे से डरूँ।
चुप-चाप सन्न होकर,
सुना कोरोना कान खोलकर,
छोटी सी अट्ठहास भरकर,
बोला कोरोना विनम्र होकर।
हाँ मेरी इतनी औकात नहीं,
जो तुमको डरा सकता हूँ,
बस इतनी सी ताकत है,
तेरी इहलिला समाप्त कर सकता हूँ।
तू बंद है घरों में,
ये छोटी ताकत है मेरी,
चाहकर भी बाहर नहीं निकलता,
ये बड़ी औकात है तेरी।
तू आपस में प्रेम करना भूल गया,
लोगो से मिलना-जुलना भूल गया।
क्या हुआ जो लोगों को छूने से डरते हो,
क्या हुआ जो अपनो से बातें करने से डरते हो,
क्या हुआ जो कभी चेहरा छुपा के रखते हो,
क्या हुआ जो कभी खुद को छुपाकर रखते हो।
क्यों रोते हो पैसे के लिए,
क्यों रोते हो भोजन के लिए।
मेरे चाहने से कब्र भी नसीब नहीं हो सकता है,
दफन के लिए अपनो का साथ भी नहीं मिल सकता है।
तु धरतीपुत्र,तु प्रकृतिपुत्र,
पर धरती प्रकृति आज हमसे खुश,
आज हमसे इनको जो मिला है,
इनका चेहरा ही खिलखिला है।
तुम धरती का पुत्र होकर, धरती को कुछ न समझते हो,
धरती तुमको कस्ट न दे ,फिर चाहत क्यों रखते हो ।
तुम प्रकृति का पुत्र होकर, प्रकृति को कुछ न समझते हो,
प्रकृति तुमको सबकुछ दे, फिर चाहत क्यों रखते हो ।
कुन्दन सिंह बिहारी