मानव निर्मित रेखना, जैसे कंटक-बाड़। मानव निर्मित रेखना, जैसे कंटक-बाड़। गढ़तीं पग रिसता लहू, दुखते तन-मन-हाड़।। © सीमा अग्रवाल मुरादाबाद