मानव का नवजीवन (कविता)
छोटे बच्चे का मां की गोद में होता है आगमन
पिता के कांधे पर बैठे देखता वह जहान है
दुनिया में हर माता-पिता को सदा ही नमन है
धीरे-धीरे बच्चा बढ़ाता है आगे कदम
माता-पिता के साथ अठखेलियां करता
भाई-बहन के रिश्तों की थिरकन
समय बीतते पिछे रह जाता बचपन
शुरू हो जाती है पाठशाला
नितनये अनुभवों की माला
माता-पिता-शिक्षक देते
सही-गलत का ज्ञान
सिखाते संस्कार रूपी व्यवहार
वक्त की बदलती रंग-बिरंगी तस्वीरों के संग
वही बच्चा मानव जीवन के निभाता हर रंग
सीमाओं को पार करते हुए पाता पूर्ण अनुभव
जैसे पक्षी हर मौसम में करते हुए कलरव
थमता नहीं कहीं पर भी वह
चलता रहता है मंजिल पाने को
राह की बाधाओं को पार करते हुए
बस एक ख्वाहिश में लेकर
जिंदगी के मध्य पड़ाव में
जीवन साथी को शामिल कर
निभाते हैं आगे का जीवन
फिर जब बनते हैं माता-पिता
उस दिन पता चलता है
नया अनुभव नये संदेश
नये युग में देता है वह
दोहराते हुए वही भूमिका
सिखाते हैं वे हर संस्कार
फिर अपने कर्त्तव्य पालन के साथ
हर पायदान ऊपर चढ़ते हुए
डंडा टेकते हुए बन जाते हैं
दादा-दादी नाना-नानी
फिर जिंदगी भर हर थपेड़ों को
सहन करते-करते सब कुछ भूलाकर
पहूंच जाते हैं ऐसे खुशियों के
संसार में नाती-पोतों के साथ
जीवन का असली क्रिकेट खेलते
मजेदार रन बनाते नाबाद ।