मानव और विज्ञान
लघुकथा- मानव और विज्ञान
दादा जी बहुत बेसब्री से गर्मी की छुट्टियों का इंतजार कर रहे थे कि कब उनके पोती-पोता उनके साथ रहने आएंगे और वे उन्हें गांव की ताज़ा हवा में खेत घुमाने ले जाएंगे। छुट्टियां हुई और बच्चे आ गये किंतु इस बार बच्चे अपने साथ PS 2 और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गेम्स लाए थे। वे भी दादाजी की तरह बहुत उत्साहित थे कि वो सारे गेम्स, व्हाट्सएप,फेसबुक और फोन पर गेम्स खेलना सिखाएंगे। उन्होंने दादाजी को बड़े ही चाव के साथ सब सिखाया उन्होंने भी मन से सीखा किंतु अब सभी सदस्य बिना बात किए मोबाइल और गेम्स में लगे रहते। बाहर खुली हवा में घूमना तो दूर एक दूसरे से बात करने का भी समय न निकाल पाते ।पूरे दो माह कि छुटियां एक जगह बैठकर खाने और खेलने में निकल गई। बच्चों का वज़न बढ़ गया और दादाजी भी बिमार हो गये। किंतु जब तक वे समझते तब तक उन्हें उन सब की बुरी आदत हो गई थी।
जब दादाजी के मित्र उनकी तबीयत पूछने आए तो उन्होंने सारी समस्याओं का संज्ञान लेते हुए कहा कि-
आज के बदलते परिवेश में विज्ञान की भूमिका काफी बढ़ गयी है। विज्ञान शुरू से नये दर नये प्रयोग के साथ लोगों को सुविधा प्रदान कर रहा है। विज्ञान और हमारा पारंपरिक संबंध अटूट है। आज हम वैज्ञानिक मानव कहलाते हैं। विज्ञान की शक्ति पाकर हम बर्बर होते जा रहे हैं।हमारा साधारण से साधारण और विशिष्ट से विशिष्ट व्यवहार अब विज्ञान पर आश्रित है।आज हमें अपने विवेक को जागृत करने की आवश्यकता है ताकि हम विज्ञान का वरदान रूप ग्रहण कर सकें अभिशप्त नहीं।
नीलम शर्मा