मानव और पतंग एक समान
जब हम पतंग उड़ाते हैं तो उसकी डोर हमारे हाथ में होती हैं मानव भी एक पतंग के समान है जिसकी डोर ईश्वर के हाथ में हैं
पतंग का सिरा जिस तरफ होता हैं यदि पतंग को खिंचते हैं तो पतंग का सिरा जिस तरफ होता हैं तो पतंग उसी तरफ जाती हैं
इसी तरह मानव की सोच जिस तरफ होगी मानव उसी तरफ जायगा
पतंग की डोर जितनी लम्बी होगी पतंग उतनी ऊपर जायेगी
इसी तरह मानव की सोच जितनी अच्छी होगी मानव उतनी ही ऊँचाई प्राप्त करेगा
पतंग जिस तरह आसमान में इठलाती है एक न एक दिन कट जाती है
ऐसा ही मानव है वो घमंड में इठलाता है और एक न एक दिन उसका घमण्ड चुर-चुर हो जाता है
इसलिए मानव को घमंड नही करना चाहिए।।।।।