मानवी हृदय
मानवी हृदय बोल उठी
धरती डोल उठी
कहकर सीता (नारी ) हे राम
कहती हूँ सत्य वचन,
अभिश्राप बनकर उभरी,
विरह की वेदी पर जली
ये जीवन तमाम_ हे राम
तुने छोड़ दिया ,तूने मोड़ दिया
कर दी घायल नारी नाम हे राम
दिल तड़पें नैयनन बरसें
आज भी राम ,
अभी तो उम्र शूल है।
जिंदगी तो फूल है
उपजे फूल तोड़ें ना माली
होती ऐसी खुशहाली।
ठिठकता स्वर रूकती जुबान
खोलूँ हृदय कहाँ राम
आज भी कहती है माँ
बेटी हो सीता ,पर दर्द ना हो सीते समान
होता फ्रर्क , कहते जिसे सब्र
अगर होती मेरी दुनियाँ I हे राम
_ डॉ. सीमा कुमारी, बिहार (भागलपुर)
2-6-018 की स्वरचित रचना है जिसे आज भी प्रकाशित कर रही हूं ।