मानवीय
ताउम्र
ना खुश रहें
खुशी को सोच कर,तू मिला भी नाचीज़ बनकर।
उम्र गुजरती गयी।विश्वास ,ख्वाब ,हकीकत सब बिखरते गये
शरीर और मेरे घरौंदों की उम्र ढलती रही।
ताउम्र
ना खुश रहे
अब अच्छा होगा
सब ठीक होगा
पलकें बिछाती रहीं
नजर ढूंढती रही
अमानवीय गुणों में , मानवता , मेरी मूल भूल।
या मेरा बोध, स्वभाव।