मानवता
भाव नि:स्वार्थ दिलों में लेकर…
करो सेवा मानवता की
दीन हीन को ना कभी धिक्कारो
प्रतिपल है उन्हें आवश्यकता भी …
दोगे जो, वो ही पाओगे..
स्नेहसिक्त आशिर्वाद की।
पल्लवित होंगी नित उत्थान में
सुगंधित हृदय शाख फूल की
निसार दो जीवन का सबकुछ ..
दुखियारों में अपना मूल भी
नि:स्वार्थ दिलों में फिर भरें …
मानवता सेवाभाव की
निधि भार्गव