मानवता
मनुष्य अगर तुम बनना चाहो, एक जमाना लगता है,
और असुर यदि रहना चाहो, एक बहाना लगता है,
बनने और सवंरने में शेहरों की सादियां लगते हैं।
और मिटाने में हिरोशिमा सा अनुबम ही लगता है,
जख्मों का क्या है केवल कटु वचन से भी हो जाते हैं,
तीस वर्ष का बरगद देखो, केवल तीस मिनट में कट जाता है,
जिसकी यौवन आने में इतिहास का पन्ना लगता है। नाथूराम गोडसे तो हर गली मोड में मिल जाते हैं,
पर मोहन को गांधी बनने में एक समूचे योग लगता है।
जिन स्वार्थ में साल सैकड़ो सभी लोग जी लेते हैं,
पर जो शहीद हुआ कारगिल में वही दधीचि सा लगता है,
सौ करोड़ की जनसंख्या को वैसे तो हम पार कर गए, ,
उसकी संख्या लाख से कम है जो इंसान सा लगता है,
जाति धर्म भाषा की अग्नि१ मिनट में लग जाती है
पर बुझाने में तो यारों इसको एक जमाना लगता है
राष्ट्र प्रेम और मानवता को को धर्म मान लेना,
सत्य प्रेम और कर्म हमेशा गंगा सा पवन लगता है