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25 Jun 2020 · 1 min read

मानवता

किसी मंदिर के बाहर भूख से सिसकी है मानवता
मज़ारों पर चढ़ीं चद्दर मगर ठिठुरी है मानवता
करोड़ो का दिया चंदा चली जब बात मजहब की
गरीबी मे मगर कोठे पे जा बिकती है मानवता

©
शरद कश्यप

Language: Hindi
1 Comment · 511 Views
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