मानवता
किसी मंदिर के बाहर भूख से सिसकी है मानवता
मज़ारों पर चढ़ीं चद्दर मगर ठिठुरी है मानवता
करोड़ो का दिया चंदा चली जब बात मजहब की
गरीबी मे मगर कोठे पे जा बिकती है मानवता
©
शरद कश्यप
किसी मंदिर के बाहर भूख से सिसकी है मानवता
मज़ारों पर चढ़ीं चद्दर मगर ठिठुरी है मानवता
करोड़ो का दिया चंदा चली जब बात मजहब की
गरीबी मे मगर कोठे पे जा बिकती है मानवता
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शरद कश्यप