#कुंडलिया//माँगें
माँगें हक की कीजिए , लेना निज अधिकार।
रहना बने गुलाम तुम , करो नहीं स्वीकार।।
करो नहीं स्वीकार , बराबर सबका हिस्सा।
दाता का उपहार , आपका सच्चा किस्सा
सुन प्रीतम की बात , नहीं मानवता लाँघें।
हद में रहकर चाह , पूर्ण हों जायज़ माँगें।
#आर.एस. ‘प्रीतम’