मानवता के डगर पर
प्यारे तुम मुझे भी अपना लो ।
गुमराह हूं कोई राह बता दो।
युं ना छोडो एकाकी अभिमन्यु सा रण पे।
मुझे भी साथले चलो मानवताकी डगर पे।।
वहां बडे सतवादी है।
सत्य -अहिंसाकेपुजारी हैं।।
वे रावण के अत्याचार को मिटा देते हैं।
हो गर हाहाकार तो सिमटा देते है।।
इस पथ मे कोई जंजीर नही
जो बांधकर जकड सके।
पथ मे कोई विध्न नही
जो रोककर अ क ड सके।।
है ऐ मानवता की डगर निराली।
जीत ले जो प्रेम वही खिलाडी।।
यहां मजहब न भेदभाव,सर्व धर्म समभाव से जिया …है।
वक्त आए तो हस के जहर पीया करते है।।
फिर तो स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं है।
मानव मानव ही है सोच का फर्क है।।
ओ प्यारे !इस राह से हम न हो किनारे …
न हताश हो न निराश हो।
मन मे आश व विश्वास हो।।
फिर आओ जग मे जीकर
जीवन -ज्योत जला दे।
सुख-शांति के नगर को स्वर्ग सा सजा दे।।
आज भी राम है कण – कण मे
भारत – भारती के जन जन को बता दे।।