मानवता :- एक कदम और
मानवता:-एक कदम और
राहुल अपने घरेलू काम में व्यस्त था उसे अर्ध नींद में उठाकर उसके पिता जी ने ग्वार का चारा एक जगह अच्छी तरह से जमाकर बड़ी चादर से ढकने को बोला था ताकि बरसात से चारा भीग ना जाए।
इस काम में एक जानकार भैया उसका साथ दे रहे थे। वो बता रहे थे कि कैसे इसको जमाना है, कैसे चादर से ढकना है? उनकी तबियत कुछ खराब थी।अभी दोपहर के तीन बजे थे भैया को फीवर घेरने लगा था ,वो राहुल से बोले की तुम घर जाओ और तुम्हारी भाभी से बुखार उतरने की दवा ले आओ।
“कहां पर रखी है दवाइयां?”
“कमरे की बीच वाली अलमारी में एक काले लिफाफे में रखी हुई है। उन्हें बोल देना वो लाकर तुम्हें दे देगी।”
राहुल अभी अर्धनींद में था।आलस का खुमार उनकी आंखों में छाया था वह दवा लाने गया परन्तु भैया के घर न जाकर दो चार घर छोड़कर दूसरे घर में चला गया। उसने देखा कि कमरे में बहुत से बुजुर्ग और अधेड़ व्यक्ति बैठे हैं। उसे कुछ ज्ञात हुआ कि शायद वह गलत जगह आ गया है, भैया का घर भूल गया है। अंदाजा लगाया कि इस घर में शायद किसी का निधन हो गया है इसलिए ये लोग बैठे हैं । वह कमरे से बाहर आ गया।
वहां एक ओर उसकी प्रेयसी संजु खड़ी थी सबको चाय दे रही थी।उसको देखते ही नींद उड़ गई,उसको अब पता चला कि वो वास्तव में कहां आ गया है?
संजु अक्सर छुट्टियों में अपनी मौसी के यहां आ जाया करती थी तभी से राहुल और वो एक दूसरे को चाहने लगे थे। एक साल हो गया था उसको अपने गांव गये हुए क्योंकि एक दिन संजु ने उससे कहा-
“देखो राहुल तुम्हें मेरी मां से बात करनी चाहिए अपनी शादी के बारे मेें, तुमसे अब और दूर नहीं रह सकती मैं।”
“पागल हो गई हो क्या? तुम्हारा परिवार और यह समाज हमें स्वीकार नहीं करेगा।तू अलग जाति की है और मैं अलग जाति का। इस दुनिया में प्रेम और बिस्तर बिना जात-पात के सजाया जा सकता है किन्तु शादी करना
यहां गलत है।”
“तो फिर क्यों मेरे पास आये? क्यों मुझे प्रेम करने को मजबूर किया? आज जब मुझे तुम्हारी जरूरत है तो मुझे जात-पात का हवाला देकर ठुकरा रहे हो।”
“समझने की कोशिश करो यार मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता बस “, यह सुनकर वो रोने लगी, लम्बी सांस भरकर आंसू पोंछते हुए बोली –
“ठीक है!आज के बाद अपनी शक्ल मत दिखाना मुझे। मैं अपने गांव चली जाऊंगी और फिर कभी भी लौट कर तेरे गांव नहीं आऊंगी।” फूट फूट कर रोते हुए वह चली गई तब से आज मिली है।
इन स्मृतियों को याद करते हुए राहुल ने संजु से नजरें फेर ली और बिना कुछ बोले जाने लगा…
“तुम इसी लायक हो। नजरें झुका कर ही रहोगे सदा।”
राहुल ने कोई उत्तर नहीं दिया ! एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।वह गांव की चौगान की ओर निकल गया।संजु आंखें भीगोती हुई भीतर चली गई।
चौगान में टेंट लगा था और जय हिन्द वन्देमातरम, भारत माता की जय का घोष हो रहा था। राहुल ने सोचा शायद कोई उत्सव मनाया जा रहा हैै, वह खुशी से उस ओर तेज कदमों से बढा।
देखा कि गांव में एक वीर जवान के शहीद होने पर लोग अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।महामारी का दौर था इस लिए ज्यादा भीड़ नहीं थी तभी वहां पुलिस ने अपनी दस्तक दी। राहुल ने सुना था कि पुलिस डंडे से बहुत मारती है। वह बिना वहां रूके पतली गली की ओर भाग गया और एक खाली पड़े मकान में छुप गया।
लोगों और पुलिस वालों का तेज वार्तालाप संवाद उसे सुनाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद सबकुछ शांत हो गया।
लाउडस्पीकर लगा कर चेतावनी दी जा रही थी और पुलिस वाले गलियों में चक्कर लगा रहे थे। राहुल घबरा गया और सोचने लगा कि ‘क्या लेने गया था और कहां आकर फंस गया’। सहसा उसे लगा कि कोई उसकी ओर आ रहा है वह डर के मारे निकल कर भागा किन्तु एक पुलिस वाले ने पकड़ लिया।
“तुम यहां क्या कर रहे हो? घर कहां है तुम्हारा?”
“जी साहब ! मेरा घर तो यहीं पास में है बस भैया की तबीयत खराब हो रही थी तो दवा लेने बाहर आया था।
माफ कर दो साहब फिर कभी भी बाहर नहीं निकलुंगा।” राहुल एकदम घबरा गया था डर के मारे आवाज भी रूक रूक कर निकल रही थी।
“तुम्हें पता नहीं है क्या घर से बाहर निकलना ही नहीं है?” बिना रहम करते हुए वह उस पर डंडे बरसाने लगा। राहुल माफी मांगते रहा पर वह उसे पीटते रहा।
अचानक से पुलिस वाले की हालत बिगड़ी और वह खांसते हुए गिर पड़ा। राहुल को भागने का मौका मिल गया।
दर्द इतना ज्यादा था कि ठीक से भागा भी नहीं जा रहा था।सोच रहा था कि ‘कैसे जनता के रखवाले हैं इंसान की मजबूरी ही नहीं समझते। इस तरह पीटा जाता है क्या किसी को’? फिर अचानक वह भागते हुए रुका…. उसने स्मरण किया कि ‘वो साहब गिर पड़ा था तो उसे भागने की बजाय उनकी मदद करनी चाहिए थी’। एक द्वंद उसके सामने आ गया,कभी सोचता कि ‘मदद करनी चाहिए तो कभी जवाब नहीं आता’।
अंत में मन बोला ‘धिक्कार है! राहुल तुम्हें!
मदद करने की बजाय उन्हें तू तड़पता छोड़ आया’।वह स्वयं को कोसने लगा और वापस भागा। पुलिस वाले के पास आकर बोला….
“साहब जी क्या हो गया है आपको ,उठो साहब कुछ तो बोलो।”
वह जोर जोर से चिल्लाने लगा किन्तु डर के मारे सभी अपने दरवाजों को बंद कर तमाशा देख रहे थे। कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था।
पुलिस वाला बेहोश हो गया था और मानवता भी वहां अपना दम घुटा चुकी थी।वह मदद को चिल्लाता रहा,दर दर का दरवाजा खटखटाता रहा परन्तु कोई भी बाहर नहीं निकला।
तभी उसे पुलिस गाड़ी का सायरन बजता सुनाई दिया।वह अब उस ओर भागा.. दर्द के मारे भाग भी नहीं पा रहा था। उसके सामने से गाड़ी निकली तो वह जोर जोर से चिल्लाया। पुलिस वाले का अचानक ध्यान गया तो उसने गाड़ी रोक ली। दो तीन पुलिसकर्मी उतर कर पास आये और बोले….
“ओ लड़के क्यों कंठ फाड़ कर चिल्ला रहा है?”
भागदौड़ की वजह से उसकी सांसें फूल रही थी।
‘अंगुली से इशारा करते हुए’…
“वहां आपका एक साथी बेहोश हो गया है, कोई भी मदद के लिए बाहर नहीं आ रहा है।”
“कहां…किस ओर… क्या हुआ है?”सभी पुलिसकर्मी एकसाथ बोले।
“पता नहीं साहब… वो वहां है! आईये मेरे साथ..”
सब उस ओर दौड़े। एंबुलेंस को फोन कर दिया गया। एक साहब पानी लेकर आया और उसके मुंह पर छींटे मारें ।उन्हें होश आ गया तब तक एम्बुलेंस भी आ गई थी।साहब को अन्दर सुलाया तथा दो पुलिसकर्मी भी उनके साथ बैठ गये। एम्बुलेंस उन्हें लेकर चली गई।
“शाबाश बेटा !… आज तुम्हारी वजह से इन्सानियत शर्मसार होने से बच गई।”
“क्या नाम है तुम्हारा?”
“जी…. राहुल”
“क्या करते हो? तुम”
“पिताजी खेती करते हैं, मां गृहिणी है बस मैं उनके काम में हाथ बंटा देता हूं।”
“वाह! बहुत अच्छे लड़के हो तुम,
पढ़ाई वढा़ई नहीं करते क्या ?”
“करता हूं ना साहब अभी दसवीं कक्षा में हूं।”
“ये साहब साहब कहना छोड़ो तुम एक होनहार लड़के हो अंकल बोल सकते हो मुझे।”
“ठीक है अंकल”
“ये चोट कैसे लगी तुम्हें? और ये किस चीज के निशान है ये तुम्हारे बदन पर?”
“कुछ नहीं अंकल ! ज्यादा भागा था ना तो गिरने की वजह से चोट लग गई।”
“क्या मतलब है बेटा?”
“अरे अंकल! उस अंकल की मदद के लिए गाड़ी पीछे भागा था ना तब चोट लग गई थी।”
ओह! “देखो अब तुम घर जाओ और हां घर से बाहर नहीं निकलना, यह जो महामारी फैल रही है ना बड़ी भयानक महामारी है।इसका अभी तक कोई इलाज नहीं मिल पाया है और ना ही कोई दवा बन पाई है। इसलिए घर में सबको बोलना की कोई बिना काम के बाहर नहीं निकले।”
“ठीक है अंकल जरूर बोल दूंगा सबको।”
अंकल ! “क्या यह महामारी छूने से एक दूसरे में फैल जाती है?”
‘हां बेटा’! “यह रोगी के सम्पर्क में आने से एक से दूसरे में फैल जाती है। खांसी, बुखार,सर दर्द इसके लक्षण हैं , इसलिए तो हम सबको बोल रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा दूरी बना कर रखें और मास्क का उपयोग करें।”
इतना सुनते ही राहुल एकदम से घबरा गया और बिना कुछ बोले घर की ओर दौड़ पड़ा। वो लोग भी गाड़ी लेकर दूसरे गांव की ओर निकल गये।
अब राहुल यह सोचने लगा था कि ‘मुझे पीटने वाले वो अंकल भी खुद तेज खांसते हुए गिर पड़े थे कहीं वे स्वयं महामारी का शिकार हुए तो’?
‘नहीं नहीं ऐसा मत होना ऐ खुदा ! वे एकदम स्वस्थ होने चाहिए बस’।
‘अगर ऐसा हुआ तो मैं भी उस महामारी का शिकार माना जाऊंगा। मेरे अपने सब पराये हो जाएँगे और आस-पड़ोस के सब लोग ताने मारेंगे मुझे। सारे दोस्त मुझसे मिलना और साथ खेलना छोड़ देंगे’।
ऐसी गंभीर व्यथा में डूबा हुआ राहुल घर पहुंचा।तब तक तो वो भैया अपने घर जा चुके थे।
“कहां चला गया था तू ? तुम्हारे भैया तो इंतजार करके चले गए और तुम्हारे पापा भी उनके साथ गए हैं।”
वो मां ! ‘मैं’ घबराया हुआ राहुल कुछ बोल भी नहीं पा रहा था।
“इतनी देर कहां पर लगायी?”
वो मां ! ‘ मैं है ना ‘
बीच में ही उसकी मां फिर बोल उठी…
“ये जख्म कैसे हैं? पीठ पकड़े और डरा हुआ सा क्यों खड़ा है ? कुछ बोल तो सही।”
राहुल एकसाथ इतने सवाल सुनकर सहम सा गया और बिना कुछ बोले बिस्तर ,कपड़े लेकर छत के चौबारे में जाकर बंद हो गया। मां भी उसके पीछे पीछे ऊपर चली गई।
‘मां ने पूछा’- “क्या हुआ है बेटा कुछ बता तो सही?”
“आप लोग अब मुझसे दूर ही रहना मां !” ‘राहुल अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बोला’।
“देशभर में जो यह महामारी चल रही है ना उसका मैं भी अब शिकार हो गया हूं मां!”
“ये क्या कह रहा है बेटा तू ?ये सब कैसे हुआ?”
राहुल ने सब वृतांत सुनाया और बोला “शायद एम्बुलेंस अब मुझे भी लेने आती ही होगी। उस अंकल को होश आ गया था मां !”
‘वो अंकल सब बता देंगे । इसलिए मेरा भी टेस्ट लिया जाएगा और यदि मैं पॉजिटिव आया मां तो मुझे अस्पताल में भर्ती रखा जाएगा। आप सबको भी नहीं मिलने देंगे मुझसे’।
“कारावास सी सजा काटनी पड़ेगी मां मुझे।”
तभी पुलिस के साथ एंबुलेंस का सायरन बजता सुनाई दिया। “जाओ मां वे लोग आ गए हैं,” ‘तू घबरा नहीं बेटा, मैं उनसे बात करती हूं’।
उसकी मां ने जाकर दरवाजा खोला।
“प्रणाम माता जी!” पुलिस वाले ने अभिवादन किया। ‘राहुल कहां है मां जी? उसने अपनी जान जोखिम में डालकर पीटने वाले की ही जान बचाई’। “कितना संस्कारी बच्चा है आपका? उसे बोलिए कि उसको कुछ नहीं होगा। पुलिस अंकल आया है वह घबराए नहीं।”
“वो ऊपर कमरे में बंद हो गया है। बाहर नहीं निकल रहा।”
‘देखा मां जी वो आप लोगों की कितनी परवाह करता है’। “वो जानता है इस महामारी के बारे में तभी वह मुझसे फैलने की बात पुछ रहा था। मैं समझा नहीं था तब किन्तु जब हमारे साथी भाई ने बताया तो मैं खुद उसकी चिंता करते हुए उसको लेने आया हूं।”
“मेरा बेटा ठीक तो हो जाएगा ना?”
“मां जी आप चिंता मत कीजिए। आपके बेटे को कुछ नहीं होगा। मैं वादा करता हूं। अब आप उसे नीचे बुलाइये।”
उसकी मां राहुल को नीचे बुला लाती है। राहुल डरा हुआ था। ‘देखो राहुल घबराओ मत तुम्हें कुछ नहीं होगा।बस एक छोटी सी जांच ही तो करनी है’।
“नहीं अंकल मैं जांच नहीं करवाऊंगा। मैं सुई नहीं लगवाऊंगा।” ‘देखो बेटा मैं बोल रहा हूं ना कि तुम्हें कुछ नहीं होगा।अच्छे लड़के जिद्द नहीं करते, बड़ों का कहना मानते हैं’।
“तुम तो एक होनहार और बहादुर लड़के हो, तुम्हें घबराना नहीं चाहिए।”
राहुल मान जाता है। उसकी मां रोने लगती है।”तू रोना मत मां मुझे कुछ नहीं होगा अंकल बोल रहे हैं ना। मैं जल्दी ही घर वापस आ जाऊंगा।” ‘हां मां जी राहुल को कुछ नहीं होगा’।
एम्बुलेंस राहुल को साथ ले जाती है।पड़ौसी घरों में इस बात की लहर दौड़ जाती है कि ‘राहुल भी महामारी का शिकार है’।
‘अब जो भी राहुल से मिले थे वे सब सदमे में है कि क्या वे भी इस महामारी के शिकार हैं’?
रोहताश वर्मा ” मुसाफिर “