मानवता अब मर गयी , मर्यादा है दूर ।
मानवता अब मर गयी , मर्यादा है दूर ।
रोज सियासत कर रही , नफरत के दस्तूर।।
नफरत के दस्तूर , मिटी समरसता सारी ।
छल ,हिंसा , भय ,द्वेष , कपट की माया भारी ।
घर घर हैं लंकेश , दिखाते चिर दानवता । पूज्यनीय शुचि देश , किंन्तु झूठी मानवता।।
सतीश पाण्डेय