माधव मालती छंद
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माधव मालती छंद- 28 मात्रा
2122 2122, 2122 2122
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ऋतु वसंती आ गई है, डाल पर कलियाँ खिली हैं ।
डोलते अलि गुनगुनाते, तितलियाँ हँसती मिली हैं ।।
पुष्प खिलकर मुस्कुराये, गंध से महकी पवन है ।
तान धनु फिरता अनंगा, प्रकृति का होता सृजन है ।।
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जिन्दगी हमको मिली जो, ये अमानत और की है ।
पीर जिसने पी पराई ये उसी ने यार जी है ।।
जिंदगी का अर्थ जिसने, भोग करना है निकाला, ।
आदमी की जाति में वह, आदमी लगता निराला ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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