मादक मृगनयनी
मधुर-मधुर और सुमधुर सुखकर,
मद्य से मादक तेरे अधर प्रिये।
कटाक्ष दृष्टिपात से वार करे, जो
मृगनयनी सा तेरे नेत्र प्रिये।
तू है मेघ की मनमोहक छटाएँ,
मैं घनघोर बरसता मेघ प्रिये।
मैं तृष्णा से व्याकुल पथिक प्रिये,
तू शीतल जल की पुष्कर प्रिये।
तू चन्द्र की मनमोहक पूर्णकला सी,
मैं सूरज का कर्कश धूप प्रिये।
नील-पट से आच्छादित अम्बर सा,
आ; आगोश में ढक लूं प्राणप्रिये।
सूरज चलता है जैसे छाया के संग,
तू भी बन जा मेरी प्रतिबिंब प्रिये।
आ; कर दें एक-दूजे को समर्पित,
कुसुम को जैसे प्रिय भ्रमर प्रिये।
क्रौंच-क्रौंची सा रमण करें, हम
अनुराग में एक-दूजे के मुग्ध प्रिये।
–सुनील कुमार