मात्र प्रेम क्योकि असली और नकली कुछ नहीं होता है।
दो ही तरह के डर होते है एक मन का दूसरा तन का।
तभी हम बोलने से कतराते है कि कही तन को चोट न लग जाये अथवा मन यानी अहम को चोट न लग जाये। पर लगती है तो सौ दार लग जाये क्योकि जो चोट से टूटेगा वह नकली ही होगा। फिर असली सामने आएगा। जो कीमती है वास्तविक है वाकि सब झूठ ही है। जिसे तो टूटना ही चाहिए बस शर्त मात्र इतनी है जोखम कौन उठाये चोट करने का क्योकि वही डर तो दूसरी तरफ भी है तो फिर विरले होते है कुछ लोग जो खुदको निर्भीक कर दूसरे को भी वही सच दिखा पाते है। वही प्रेम जानो। जो सामने वाले के साथ खुदको भी ऊंचा उठाने मे मदद करे।